अधिकतर लोगों की समस्या यह होती है कि उनका तन और मन दोनों पर नियंत्रण नहीं होता। तन को संभालो तो मन बहक जाता है, मन को पकड़ो तो तन साथ नहीं देता। इसी पसोपेश में हमारी आधी जिंदगी गुजर जाती है। कई बार हम तन और मन को नियंत्रित करने के बहाने लगभग निष्क्रिय कर देते हैं। देह की चंचलता और सक्रियता में फर्क है।
पहले सक्रियता को समझ लें। शरीर सक्रिय है और मन निष्क्रिय नहीं है तो अशांत हो जाने के खतरे हैं और यदि देह चंचल है तथा मन नियंत्रित नहीं है तो मानसिक विकृति आ जाने का संकट होगा। जीवन में अशांति लगातार बनी रहे तो यह विकृति को आमंत्रण होगा। मन का नियंत्रण उन शक्तियों को सक्रिय होने का मौका देता है जिनसे व्यक्तित्व विकास होता है। दुनिया उसकी मु_ी में है जिसके काबू में उसका अपना मन है। शांत मन स्थितियों का मूल्यांकन तटस्थ और निष्पक्ष भाव से कर पाएगा। अन्यथा हम स्वयं की रुचि की थोपी हुई बातों से परिस्थिति के प्रति अपने विचार बनाएंगे। ऐसे में सत्य लुप्त और भ्रम प्रकट हो जाता है। मन को एक और शौक होता है बीते हुए को पकड़ कर रखना तथा भविष्य में उलझना। वासनाएं और तनाव ऐसे में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। बीते कल और आने वाले समय के प्रति मन की रुचि जीवन की एकाग्रता को भंग करती है।
एकाग्रता को अध्यात्म ने बड़ा प्यारा शब्द दिया है सेल्फ रिस्पांसिबिलिटी। संसारभर के विकास के प्रति जागरूक हम, स्वयं के आध्यात्मिक विकास के प्रति भारी गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। हमारी सारी साईकिट एनर्जी को गलत प्रवाह देने में मन बड़ा माहिर होता है। ऐसे में यदि आप किसी परिवार या व्यवस्था के मुखिया हैं तो अनुशासनहीनता, प्रेम का अभाव, अशांति, परिणामों में असफलता जैसे परिणाम देंगे।
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