Sep 8, 2010

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काम-वासना को शत्रु क्यों कहा गया है?

मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थों में काम को भी सम्मिलित किया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि काम इंसानी जिंदगी में अहं भूमिका निभाता है। किन्तु दूसरी तरफ हम देखते हैं कि काम को क्रोध, लोभ, मोह, मद और अंहकार जैसे विकारों में सर्वप्रथम माना गया है। इस असमंजस या दुविधा का हल हमें गीता में भगवान कृष्ण के उपदेश में मिल सकता है।

श्रीकृष्ण बताते हैं काम और क्रोध ये दो मनुष्य को पाप में धकेलते हैं। काम यानि कामनाएं विषय रूपी भोग मांगती है। भोगों से तृप्त न होकर और अधिक प्रज्ज्वलित हो उठती हैं। यह एक ऐसा तथ्य है, जिसे हम सब अपने जीवन में अनुभव करते हैं। लेकिन काम जो सृष्टि का मूल ही कहा गया है किस प्रकार पाप बन जाता है?

श्रीकृष्ण कहते हैं-

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्॥
-3/३८
अर्थात्- जिस प्रकार आग धुएं से ढकी रहती है, जिस प्रकार दर्पण मैल से और गर्भ जेर से ढका रहता है, उसी प्रकार इस काम से विवेक रूपी ज्ञान ढका रहता है।

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